पुरातन का मोह बड़ा गहरा है मेरे लिए । पुराने दिनों की यादें, पुरानी डायरी , पुराने साथी ….., कहीं गहराई से जुड़े हैं मुझ से । पुरानी डायरी भर चुकी बहुत दिनों पहले , नई आ गई है हाथ में मगर मोह है कि छूटता ही नही ; लिखने के लिए उसी में कोई खाली कोना ढूंढती हूँ। नई डायरी से परिचय धीरे- धीरे बढेगा अभी तो वह अजनबी सी लगती है । एक छोटा सा “कोना” पुरानी पहचान के नाम ---
“आड़ी-टेढ़ी पंक्तियों और
मन के उठते गिरते
ज्वार-भाटे के बीच से
शब्दों के समन्दर से झांकते
एक कोरे कागज ने पूछा--
“अनमनापन क्यों है तुम में?”
आओ ………, मुझ से
थोड़ा सा अपनापन उधार ले लो.”XXXXX