कोरे पन्नों पर मेरी लिखी
आड़ी तिरछी पंक्तियों और
यहाँ-वहाँ कटी इबारतों से बनी
बेतरतीब सी आकृतियों को देख
वह उसे दरिया में आई सुनामी कहती है ।
बात तो सही है.....,
सुनामी चाहे दरिया की हो या मन की
बहुत कुछ तोड़ती और जोड़ती है
तभी तो ध्वंस और सृजन के बीच
नव द्वीप निर्मित होते हैं ।
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गहन सोच के बाद उपजा दर्द....लाजवाब आप कितनी गहराई से सोचती समझती और प्रकट भी करती हैं :)
जवाब देंहटाएंभाव आपके हृदय तक पहुँचॆ मेरे लेखन सफल हुआ .आपका बहुत बहुत धन्यवाद संजय जी .
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया:)
जवाब देंहटाएंआप बहुत बहुत अच्छा लिखते हैं . अच्छा साहित्य पढ़ने को मिले यह सौभाग्य की बात है मेरे लिए .
हटाएंवाहः बहुत खूब
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद लोकेश जी .
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