सुदूर उत्तरी छोर पर
जब घनी बर्फ जमती है ।
तो मरूभूमि में आते हैं
साइबेरियन सारस ।
और उसके लिए
तुम्हारा ख़त ।
दुर्लभ हैं उनका आना
साल में एक बार ही आते हैं ।
बिछड़ अपने कारवां से
किसी विरहिणी की खातिर
'कुरजां'बन जाते हैं।
मासूम सी थी वो
तुम्हारा ख़त पा
निहाल हो जाती थी ।
कभी फेरती इबारत पर अंगुली
तो कभी मन्दिर में
पुष्प सा चढ़ाती थी ।
अपनी जरूरतों के मुताबिक
साइबेरियन सारस
हर वर्ष जरूर आते हैं ।
और उसके मन में दबी
उसकी व्यथा सुनने वाली
उसकी प्रिय संदेश वाहक
'कुरजां' बन जाते हैं।
XXXXX
जब घनी बर्फ जमती है ।
तो मरूभूमि में आते हैं
साइबेरियन सारस ।
और उसके लिए
तुम्हारा ख़त ।
दुर्लभ हैं उनका आना
साल में एक बार ही आते हैं ।
बिछड़ अपने कारवां से
किसी विरहिणी की खातिर
'कुरजां'बन जाते हैं।
मासूम सी थी वो
तुम्हारा ख़त पा
निहाल हो जाती थी ।
कभी फेरती इबारत पर अंगुली
तो कभी मन्दिर में
पुष्प सा चढ़ाती थी ।
अपनी जरूरतों के मुताबिक
साइबेरियन सारस
हर वर्ष जरूर आते हैं ।
और उसके मन में दबी
उसकी व्यथा सुनने वाली
उसकी प्रिय संदेश वाहक
'कुरजां' बन जाते हैं।
XXXXX
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏
- "मीना भारद्वाज"