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सोमवार, 8 मई 2017

“कुरजां”

सुदूर उत्तरी‎ छोर पर
जब घनी बर्फ जमती है ।
तो मरूभूमि में आते हैं
साइबेरियन सारस ।
और उसके लिए 
तुम्हारा ख़त ।

दुर्लभ हैं उनका आना
साल में एक बार ही आते हैं ।
बिछड़ अपने कारवां से
किसी विरहिणी की खातिर
 'कुरजां'बन जाते हैं।

मासूम सी थी वो
तुम्हारा ख़त पा
 निहाल हो जाती थी ।
कभी फेरती इबारत पर अंगुली
तो कभी मन्दिर में 
पुष्प सा चढ़ाती थी ।


अपनी जरूरतों के मुताबिक
साइबेरियन सारस 
हर वर्ष जरूर आते हैं  ।
और उसके मन में दबी
 उसकी व्यथा सुनने वाली 
उसकी प्रिय संदेश वाहक
'कुरजां' बन जाते हैं।


XXXXX

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- "मीना भारद्वाज"