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गुरुवार, 4 मई 2017

“नींद”

झिलमिल चाँदनी रात की,
भोर की लालिमा बन जाती ।

नींद कारवां से भटकी मुसाफिर,
बन्द दृग पटलों में भी नही आती ।

चँचल हठीली जादूगरनी,
कितनी मनुहार कराती ।

घर से निकली सांझ के तारे संग
भोर के तारे संग छिप जाती ।

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- "मीना भारद्वाज"