( 1 )
सुबह और शाम खुली हवा में घूमना बचपन से ही बहुत प्रिय रहा है मुझे । इसका कारण शायद पहले खुले आंगन और खुली छत वाले घर में रहना रहा होगा । शहर में आ कर अपना यह शौक मैं अपने घर के पास बने पार्क में घूम कर पूरा कर लेती हूँ । शाम के समय अक्सर बच्चे बास्केट बॉल या फुटबॉल खेलते मिल जाते हैैं । एक दिन बच्चों के ग्रुप के बीच एक औरत खड़ी मोबाइल पर कुछ करती दिखाई दी, दो राउंड पूरे होने के बाद भी उसे वहीं खड़े देखकर कुछ अजीब सा लगा कि क्यों बच्चों का रास्ता रोके खड़ी है दूर खड़ी होकर भी बात कर ही सकती है मगर सार्वजनिक जगह जो ठहरी । उसका उपयोग करने का सब का समान हक है यहाँ वर्जना अस्वीकार्य है ।
( 2 )
कुछ ही देर में माहौल अन्त्याक्षरी जैसा हो गया बच्चों का झुण्ड एक तरफ और महिला दूसरी तरफ मगर जो कानों ने सुना वह अप्रत्याशित था , बच्चे --- “But aunty , we are seniors .और महिला बराबर टक्कर दे रही ही थी---- O…, excellent . listen me you are also kids. गर्मा गर्म बहस सुन कर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँची कि महिला का बेटा जो उन बच्चों से बेहद छोटा था बास्केट बॉल खेलना चाह रहा था जिसके चलते बड़े बच्चों को परेशानी हो रही थी और समस्या यह थी कि दोनों पक्षों में से पीछे हटने के कोई तैयार नही था ।
( 3 )
घर की तरफ लौटती मैं सोच रही थी कि संस्कार कहाँ कम थे और अधिकार भाव के लिए सजगता कहाँ अधिक थी । Morality के मानदण्ड पर तो दोनों पक्ष ही गलत थे ऐसे में रहीम जी का दोहा ----छमा बड़ेन को चाहिए ,छोटन को उत्पात ………….।। याद आते ही बच्चों का पलड़ा भारी हो गया ।
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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏
- "मीना भारद्वाज"