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शनिवार, 15 अप्रैल 2017

"संस्कार‎"

( 1 )
सुबह और शाम खुली हवा में घूमना बचपन से ही बहुत प्रिय रहा है मुझे । इसका कारण शायद पहले खुले आंगन‎ और खुली‎ छत वाले घर में रहना रहा होगा । शहर में आ कर अपना यह शौक  मैं‎ अपने घर के पास बने पार्क में घूम‎ कर पूरा कर लेती हूँ । शाम के समय अक्सर‎ बच्चे‎ बास्केट बॉल या फुट‎बॉल खेलते मिल जाते हैैं । एक दिन बच्चों‎ के ग्रुप के बीच एक औरत खड़ी मोबाइल पर कुछ करती दिखाई‎ दी,  दो राउंड पूरे होने के बाद भी उसे वहीं‎ खड़े देखकर कुछ अजीब‎ सा लगा कि क्यों बच्चों‎ का रास्ता‎ रोके खड़ी है दूर‎ खड़ी होकर भी बात कर ही सकती है मगर सार्वजनिक‎ जगह जो ठहरी  । उसका उपयोग करने का सब का समान हक है यहाँ‎ वर्जना अस्वीकार्य है ।

( 2 )
कुछ ही देर में माहौल अन्त्याक्षरी जैसा हो गया बच्चों‎ का झुण्ड एक तरफ और महिला दूसरी तरफ मगर जो कानों ने सुना वह अप्रत्याशित था , बच्चे‎ ---  “But aunty , we are  seniors .और महिला बराबर टक्कर दे रही ही थी----  O…, excellent . listen me you are also kids. गर्मा गर्म बहस सुन कर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँची  कि महिला का बेटा जो उन बच्चों‎ से बेहद छोटा था बास्केट बॉल खेलना चाह रहा था  जिसके चलते  बड़े बच्चों‎ को परेशानी हो रही थी‎ और समस्या यह थी कि दोनों पक्षों‎ में से पीछे हटने के कोई तैयार नही था ।

( 3 )
घर की तरफ लौटती मैं सोच रही थी कि संस्कार कहाँ कम थे और अधिकार भाव के लिए सजगता कहाँ अधिक‎ थी । Morality के मानदण्ड पर तो दोनों पक्ष ही गलत थे ऐसे में रहीम जी का दोहा ----छमा बड़ेन को चाहिए ,छोटन को उत्पात ………….।। याद आते ही बच्चों‎ का पलड़ा भारी हो गया ।

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मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"