(1)
पगडंडियों में बिखरे फूल-पत्तों को देख कर
एक ख्याल सिर उठा कर मुझ से एक
सवाल पूछता है --”वसन्त आता है
तो ठीक है , प्रकृति सज सी जाती है
मगर साथ में पतझड़ क्यों ?
क्या चाँद में दाग जरुरी है ।
(2)
बादलों की रजाई से आँख-मिचौली खेलते चाँद से
मैनें एक सवाल पूछा --”तुम्हारी चाँदनी की रोशनाई से
नीले अम्बर की देह पर , तुम्हारे नाम कुछ लिख छोड़ा था
फुर्सत मिली क्या? मेरा लिखा पढ़ा क्या?
XXXXX
आपकी लेखनी अत्त्यन्त ही रोचक है
जवाब देंहटाएंThank you so much Dhruv singh ji .
जवाब देंहटाएं