प्रिय लखन
फरकै वाम अंग
जी में संशय ।
हे ! मृग छौने
मेरी मृगनैयनी
थी यहीं-कहीं ।
भ्रमर पुंज
लता-प्रसून कुंज
देखी वैदेही ?
रघु नन्दन
नील नैन निर्झर
व्याकुल मन ।
हे पर्णकुटी
मौन सी पंचवटी
कहाँ जानकी ?
रोए राघव
दुखी जड़-जंगम
हा ! मेरी सीय ।
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- "मीना भारद्वाज"