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गुरुवार, 30 मार्च 2017

“सिया के राम” (हाइकु)

प्रिय लखन
फरकै वाम अंग
जी में संशय ।

हे  ! मृग छौने
मेरी मृगनैयनी
थी यहीं-कहीं ।

भ्रमर पुंज
लता-प्रसून कुंज
देखी वैदेही ?
 
रघु नन्दन
नील नैन निर्झर
व्याकुल मन ।

हे पर्णकुटी
मौन सी पंचवटी
कहाँ जानकी ?

रोए राघव
दुखी जड़-जंगम
हा ! मेरी सीय ।

XXXXX

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- "मीना भारद्वाज"