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शनिवार, 4 मार्च 2017

"ख़त"

मन की खाली स्लेट पर मैनें
तुम्हारे नाम एक खुला ख़त लिखा है
तुम्हारा मंद हास और आँखों का नूर
मेरे मन के खाली कैनवास  को
वासन्ती फूलों से ढक देता है
तुम्हारी दूरी मन में खालीपन और
सांसों में बोझिलपन भर देती है
वक्त जैसे थम सा जाता है और
मेरी सोचों का दायरा बस तुम्हारे
इर्द-गिर्द  ही सिमट कर रह जाता है
क्या करूं ---  मेरे जीवन की डोर
बस तुम्ही से बँधी है और तुमसे.
दूरी के अहसास से  मेरे मन में
बोझलपन और विचारों में रिक्तता भरती है ।

XXXXX

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- "मीना भारद्वाज"