हवाएँ नीरव सी फिज़ा में
निस्तब्ध पेड़ों की पत्तियों को
जब छू कर गुजरती हैं तो
कानों में कुछ कहती हैं ।
हवाएँ जब बाँस के झुरमुटों से
गुजरती हैं तो बाँसुरी की
मादक तान बनकर
सांसों में महक भरती है ।
समुद्र की गिरती -उठती
लहरों से करती हैं अठखेलियाँ
कभी जलतरंग सी बजती
कभी नाहक शोर करती हैं ।
कभी नाहक शोर करती हैं ।
जीर्ण भग्नावशेषों से गुजरती ये
तन में सिहरन भरती
ना जाने कितनी दास्तानों का जिक्र
ना जाने कितनी दास्तानों का जिक्र
अपनी उपस्थिति संग करती हैं ।
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Mysterious mood wali post.. :)
जवाब देंहटाएंThanks a lot Sanjay ji mood pahchanne ke liye . :-)
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