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रविवार, 15 जनवरी 2017

"माँ"

दूर देश जा बैठी हो माँ!
यादों मे अब तो तुम्हारा
अक्स भी धुंधला पड़ गया है
सावन की तीज के झूले
अक्सर तुम्हारी याद दिलाते हैं
तुम्हारा और भाई का प्यार
उसी दिन तो बरसता था
मोटी रस्सी से बना झूला
पहले उसी के बोझ को
परखता था
कल ही किसी ने कहा था
मुझे "माँ"पर कुछ कहना है
माँ का प्यार, माँ के संस्कार
कुछ तो दे कर, कह कर जाती माँ.
कैसे कहूँ सब के बीच
तुम्हारी बहुत याद आती है माँ!


XXXXX

20 टिप्‍पणियां:

  1. ....बहुत मार्मिक प्रस्तुति..जीवन के कटु सत्य को बहुत ही मर्मस्पर्शी ढंग से उकेरा है..बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति जो मन को भिगो जाती है..आभार

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    1. आपकी यह सराहना मेरे लिए‎ बहुत मायने रखती है संजय जी .

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  2. मन को सहलाता सरगम!बधाई इतनी मार्मिक रचना के लिए!एक स्नेहिल भेंट:
    http://vishwamohanuwaach.blogspot.com/2014/01/blog-post_6980.html

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  3. आपकी मर्म छूती प्रतिक्रिया‎ से लिए‎ बहुत बहुत‎ धन्यवाद विश्व मोहन जी .

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  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 20 सितम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    उत्तर
    1. पांच लिंकों का आनंद में सृजन को मान देने के लिए हार्दिक आभार यशोदा जी ।

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  5. माँ की याद पर बहुत ही हृदयस्पर्शी लाजवाब भावाभिव्यक्ति...।

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    उत्तर
    1. उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार सुधा जी।

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  6. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (06-01-2021) को "अभी बहुत कुछ सिखायेगी तुझे जिंदगी"     (चर्चा अंक-3938)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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    उत्तर
    1. चर्चा मंच पर सृजन को मान देने के लिए हार्दिक आभार सर 🙏

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  7. माँ की अनगिनत स्मृतियों में खो जाने वाली रचना

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  8. उत्तर
    1. सराहना भरी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सर।

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  9. सुन्दर अभिव्यक्ति....माँ की कमी कभी पूरी नहीं हो सकती....

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    उत्तर
    1. रचना के मर्म तक पहुँचने के लिए हृदय से आभार विकास जी ।

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"