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बुधवार, 4 जनवरी 2017

“बाढ़”

सुना कहीं से , शहर में कल रात
अचानक बाढ़ आ गई
प्राकृतिक आपदा है
कभी भी , कहीं भी
बिना चेतावनी के, आ जाती है
दुख की बात है
आती है तो विनाश और
भयावहता की लकीरें भी छोड़ जाती है
दुखी हम हैं तो बचाव के रास्ते भी
हमें ही तलाशने होंगे
ईंट-पत्थरों के नहीं
संस्कारों के भवन बनाने होंगे
सजग हौंसलों और दृढ़ संकल्प की
दरकार होगी
आरोपों-प्रत्यारोपों से नही
मानवीय गुणों से जिन्दगियाँ
आबाद  होंगी .

  XXXXX

2 टिप्‍पणियां:

  1. मानवीय गुणों से जिन्दगियाँ
    आबाद होंगी
    ............गहरी बात कही। शुभकामनायें।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बहुत‎ शुक्रिया संजय जी .

    जवाब देंहटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"