top hindi blogs

Copyright

Copyright © 2024 "मंथन"(https://www.shubhrvastravita.com) .All rights reserved.

शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

“पुष्पवाटिका” ( हाइकु )

चम्पा ,चमेली
गुलाब की कलियाँ
सदाबहार


रात की रानी
रजनीगंधा संग
हरसिंगार


गुलदाऊदी
अष्ट कमल दल
गुलबहार


नीलकमल
चाँदनी ,मौलसरी
रंग हजार


लता कुंज में
भ्रमर-तितलियाँ
करें विहार

XXXXX

मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

"सीमा"

कई बार हमें 
सीमाओं का ज्ञान नही होता।
अधिकार और कर्त्तव्य का 
भान नही होता।।
अधिकार तो चाहिए 
क्योंकि जन्मसिद्ध हैं।
मगर कर्त्तव्य क्यों नही
वह भी तो स्वयंसिद्ध हैं।।
दोनों एक डोर से बंधे हैं 
साथ ही रहेंगे।
यदि चाहिए इनमें से एक 
तो बिखराव भी हम ही सहेंगे।।

XXXXX

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2016

“यकीन”

यकीन तो बहुत है
तुम पर ..
सतरंगी सपनों का
मखमली अहसास
और
सुर्ख रंगों की शोखियाँ ;
मैने बड़े जतन से
इकट्ठा कर...,
तुम्हारे अंक में पूर दिए हैं
तुम्हारा अंक मेरे लिए
तिजोरी जैसा …,
जब मन किया
खोल लिया और
जो जी चाहा खर्च किया
खर्चने और सहेजने का ख्याल ,
ना मैंने रखा और ना तुमने
जिन्दगी बड़ी छोटी है
अनमोल समझना चाहिए
इसे घूंट-घूंट पीना
और क़तरा क़तरा
जीना चाहिए

XXXXX

मंगलवार, 13 दिसंबर 2016

“अवधपुरी” (हाइकु)

अवध जन
देख दुल्हा-दुल्हिन
मुदित मन

हर्षित नृप
रघुकुल नन्दन
राजतिलक

रानी के वर
भये भूप विकल
मूर्छित तन

निर्मल मन
सीय राम लखन
वन गमन

बिन राघव
भई दिशाविहीन
अवधपुरी


XXXXX

सोमवार, 12 दिसंबर 2016

"फीनिक्स" (हाइकु)

निर्दोष गात
चंचल चितवन
धानी आँचल

खिले प्रसून
सरसे उपवन
बासन्ती मन

तू गतिमान
षट्ऋतु पथ पर
अनवरत

भू तल पर
है 'फीनिक्स' समान
अदम्या नारी


XXXXX

मंगलवार, 6 दिसंबर 2016

"अधूरी कविता"

एक अधूरी कविता,सोचा कल पूरी करुंगी
अधूरी इसलिए कि भाव और विचार
आए और चले गए , कल ही की तरह
कल का क्या ? आज के बाद
रोज ही आता है और रोज ही जाता है
कल कभी आया नही और
कविता पूरी हुई नही
मन की बातें…, पन्नों पर बेतरतीब सी
टेढ़ी-मेढ़ी विथियों की तरह
अक्सर मुँह चिढ़ाती हैं तो कभी
सम्पूर्णता हेतु अनुनय करती हैं
मगर क्या करुं….?
दिल आजकल दिमाग का काम करने लगा है
कोमलता की बातें भूल बस
समझ -बूझ की हठ करने लगा है .
×××××

रविवार, 4 दिसंबर 2016

"सीख" (हाइकु)

जीवन पथ
घनघोर अँधेरा
चलता चल

ऊँचे पर्वत
निर्जन उपवन
चलता चल

कठिन लक्ष्य
श्रम तेरी मंजिल
चलता चल

शुभ्र चाँदनी
है तेरी प्रदर्शक
चलता चल

तेरी साधना
अरुणोदय वेला
चलता चल ।।


XXXXX

शुक्रवार, 2 दिसंबर 2016

“हकीकत”

एक मुट्ठी ख्वाबों की
सहेजी एक आइने की तरह
जरा सी छुअन,
और... 
छन्न से टूटने की आवाज
घायल मुट्ठी,
कांच की किर्चों के साथ 
सहम सी गई।
एक गठरी यादों के
रेशमी धागों सी 
रिश्तों की डोर
अनायास ही उलझ सी गयी
कितना ही संभालो हाथों को
किर्चें चुभ ही जाती हैं।
सहेजो लाख
रेशमी धागों को
डोर उलझ ही जाती है।।


XXXXX

मंगलवार, 22 नवंबर 2016

"चिन्तन"


दीवार की मुंडेर पर बैठ
आजकल रोजाना एक पंछी
डैने फैलाए धूप सेकता है
उसे देख भान होता है
उसकी जिन्दगी थम सी गई है
थमे भी क्यों ना ?
अनवरत असीम और अनन्त
आसमान में अन्तहीन परवाजे़
हौंसलों की पकड़ ढीली करती ही हैं
कोई बात नही……,
विश्रान्ति के पल हैं
कुछ चिन्तन करना चाहिए
परवाजों को कर बुलन्द
पुन: नभ को छूना चाहिए .

XXXXX

शनिवार, 19 नवंबर 2016

"धरोहर"

तुम्हारे मीठे-तीखे शब्दों की एक
खेप को बड़ा संभाल के रखा था।
सोचा, कभी मिलेंगे तो
मय सूद तुम्हें लौटा दूंगी।
अचानक कल तुम मिले भी
अचेतन मन ने धरोहर टटोली भी।
मगर तुम्हारी धरोहर लौटाने से पहले ही
भावनाओं के दरिया की बाढ़ बह निकली।
और मैं चाहते हुए अनचाहे में ही सही
फिर से तुम्हारी कर्ज़दार ही ठहरी।



XXXXX

बुधवार, 16 नवंबर 2016

"मूल्य"

जीवन मूल्य, नैतिक मूल्य, वस्तु मूल्य
जन्म से ही मानव मूल्यों से बंधा है
कभी ये मूल्य तो कभी वो मूल्य
सदैव उसके साथ चलता है
जिन्दगी का हर चरण
इन्ही मूल्यों तले घिसता है
अपनी पहचान की खातिर मानव
लम्हा-लम्हा छीजता है
भौतिकता के इस युग में
बस वस्तु मूल्य ही जीतता है ।।


XXXXX

गुरुवार, 10 नवंबर 2016

“सच"

सुना था कभी
साहित्य समाज का दर्पण होता है
अक्स सुन्दर हो तो
गुरुर बढ़ जाता है
ना हो तो
नुक्स बेचारा दर्पण झेलता है
सोच परिपक्वता मांगती है
आईना तो वही दर्शाता है
जो देखता है
झेला भोगा अनुभव कहता है
उमस और घुटन का कारण
हमारी सोचों के बन्द दरवाजे हैं
हवाएँ ताजी और सुकून भरी ही होंगी
दरवाजे और खिड़कियाँ खोलने की जरुरत भर है
हम से समाज हम से प्रतिबिम्ब
तो दोष के लिए ऊँँगली का इशारा
किसी एक की तरफ ही क्यों है ।।


XXXXX