एक मुट्ठी ख्वाबों की
सहेजी एक आइने की तरह
जरा सी छुअन,
और...
छन्न से टूटने की आवाज
घायल मुट्ठी,
कांच की किर्चों के साथ
सहम सी गई।
एक गठरी यादों के
रेशमी धागों सी
रिश्तों की डोर
अनायास ही उलझ सी गयी
कितना ही संभालो हाथों को
किर्चें चुभ ही जाती हैं।
सहेजो लाख
रेशमी धागों को
डोर उलझ ही जाती है।।
XXXXX
so nice meena ji.
जवाब देंहटाएंThanks Dharmendra ji .
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(०१-०८-२०२१) को
'गोष्ठी '(चर्चा अंक-४१४३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
चर्चा मंच की 'गोष्ठी'चर्चा में सृजन शामिल करने हेतु हार्दिक आभार कुसुम जी।
हटाएंबिल्कुल सही कहा आपने कितना भी सहेजो रिश्ते की डोर उलझ ही जाती है!
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति
सराहना भरी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार मनीषा जी।
हटाएंसही कहा सुलझाते सुलझाते भी जब उलझती है रिश्तों की डोर तो आवाजे मन को चुभने के साथ दिल को भी घायल कर देती है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
लाजवाब सृजन
वाह!!!
आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थकता प्रदान की सुधा जी! हृदय से असीम आभार ।
हटाएंबेहद सुंदर और जीवंत रचना दी।
जवाब देंहटाएंजीवन में रिश्तों का गणित समझना आसान नहीं
विषमताओं की माला में हर किसी का अपना आसमां नहीं।
प्रणाम
सादर।
सृजन के मर्म को सार्थक करती सारगर्भित प्रतिक्रिया के
हटाएंलिए हृदय से असीम आभार श्वेता जी!
हाँ! ऐसा ही तो होता है । अति सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी ।
जवाब देंहटाएंआपकी स्नेहिल उपस्थिति ने सृजन का मान बढ़ाया । हार्दिक आभार अमृता जी!
हटाएंमन को छुती मार्मिक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंआपके सृजन में जीवन डग भरता हुआ दिखता है।
जरा सी छुअन,
और...
छन्न से टूटने की आवाज
घायल मुट्ठी,
कांच की किर्चों के साथ
सहम सी गई...आह!
सादर
सृजन के मर्म को सार्थक करती सारगर्भित प्रतिक्रिया के
हटाएंलिए हृदय से असीम आभार अनीता जी!
जब होता है सामना
जवाब देंहटाएंकिसी भी ख्वाब का
हकीकत से -
सच टूट ही तो जाता है
छन्न से
यूँ ही यादों का धागा
और यादों के धागे से
उलझ से जाता है ।
बहुत खूबसूरती से हकीकत बयाँ की है ।
आपकी स्नेहिल और ऊर्जात्मक उपस्थिति पूर्णता और सार्थकता देती है मेरी लेखनी को ... हृदयतल से आभार मैम 🙏🌹🙏
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