आजकल रोजाना एक पंछी
डैने फैलाए धूप सेकता है
उसे देख भान होता है
उसकी जिन्दगी थम सी गई है
थमे भी क्यों ना ?
अनवरत असीम और अनन्त
आसमान में अन्तहीन परवाजे़
हौंसलों की पकड़ ढीली करती ही हैं
कोई बात नही……,
विश्रान्ति के पल हैं
कुछ चिन्तन करना चाहिए
परवाजों को कर बुलन्द
पुन: नभ को छूना चाहिए .
XXXXX
Bahut hi prernadayi ha
जवाब देंहटाएंThanks.
हटाएंBahut hi prernadayi ha
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्द रचना
जवाब देंहटाएंhttp://savanxxx.blogspot.in
Thanks
हटाएंआप की रचना ने कायल कर दिया !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद संजय जी .
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (29-11-2020) को "असम्भव कुछ भी नहीं" (चर्चा अंक-3900) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए हार्दिक आभार सर।
हटाएंप्रेरणादायी व सुन्दर रचना - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंआपकी सराहना सम्पन्न टिप्पणी के लिए आभारी हूँ शांतनु जी . सादर नमन।
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार सर.
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