जीवन मूल्य, नैतिक मूल्य, वस्तु मूल्य
जन्म से ही मानव मूल्यों से बंधा है
कभी ये मूल्य तो कभी वो मूल्य
सदैव उसके साथ चलता है
जिन्दगी का हर चरण
इन्ही मूल्यों तले घिसता है
अपनी पहचान की खातिर मानव
लम्हा-लम्हा छीजता है
भौतिकता के इस युग में
बस वस्तु मूल्य ही जीतता है ।।
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संवेदनाओं के अवमूल्यन के दौर में वास्तु-मूल्य की जीत तो होनी ही है.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया गोपेश जी .
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