एक मुद्दत पहले गीली माटी में
घुटनों के बल बैठ कर
टूटी सीपियों और शंखों के बीच
अपनी तर्जनी के पोर से
मैंंने तुम्हारा नाम लिखा था ।
यकबयक मन में एक दिन
अपनी नादानी देखने की
हसरत सी जागी तो पाया
भूरी सूखी सैकत के बीच
ईंट-पत्थरों का जंगल खड़ा था
और जहाँ बैठ कर कभी
मैंंने तुम्हारा नाम लिखा था वहाँ
मनमोहक सा एक
बोन्साई का पेड़ खड़ा था ।।
बोन्साई का पेड़ खड़ा था ।।
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- "मीना भारद्वाज"