तुम्हारी खामोशी...,
जैसे बिन मौसम की बरसात
जब मन किया...,
बस यूं ही पसर जाती है
हवाओं का दवाब कुछ कम सा है
निर्वात का आभास कहता है
आँधी या तूफान आने वाला है
तुम्हारी खामोशी भी कुछ-कुछ वैसी ही है
बताओ ना कौन सा गुल खिलाने वाले हो ?
superb...................
जवाब देंहटाएंThank you so much.
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