top hindi blogs

Copyright

Copyright © 2024 "मंथन"(https://www.shubhrvastravita.com) .All rights reserved.

बुधवार, 11 मार्च 2015

"बचपन"

बचपन अपने आप मे एक सम्पूर्ण जीवन है. अनोखी कल्पनाएँ-बड़े होकर दुनिया का सब से बड़ा इन्सान बनने का सपना,ऐसे संसार की कल्पना जहाँ सारी कायनात केवल अपनी मुट्ठी मे कर लेने की कुव्वत,कुछ सोचना दूसरे ही पल उसे पाने का उल्लास बचपन का यथार्थ है बड़प्पन मे ये खुशियाँ कहीं खो जाती है.

         बालपन में माँ की साड़ी का पल्लू पकड़ कर बाजार

जाना,कपड़ों की दुकान मे अपने पसन्दीदा रंग के कपड़ों की तरफ अंगुली करना और उसे पा लेने पर खुशी से झूम उठना अक्सर याद आता है.अपनी कलाई की पहली घड़ी और दिल की धड़कनों के साथ घड़ी की टिक-टिक का  मखमली अहसास आज भी ना जाने कितने दिलों में सिहरन पैदा करता होगा  मगर ये सब बातें ,अहसास 70के दशक से 21वीं सदी की शुरुआत की बातें हैं. आज के दौर में ये बातें बेमानी हैं .पैसे की कीमत दिनोंदिन महत्वहीन हुई है. जो चीजें होश संभालने के बाद की बातें थी ; क़क्षा में अव्वल आने की खुशी की थी वे सब आज स्टेटस सिम्बल बन गई हैं . घड़ी पहनने के लिये कक्षा मे अव्वल आना अनिवार्य नही रह गया है. कपड़ों की रंगीन झिलमिलाहट का मखमली अहसास, माँ के हाथों से बने खिलौनों की चमक वक़्त के साथ कहीं खो सी गई  मैं यह नही कहती कि सब कुछ गलत है और आज की तरक्की, तरक्की नही है. मेरा मानना है कि बरगद,पीपल की छाँव अब कहीं खो सी गयी है. बोनसई वृक्षों की भरमार हो गई है जो मूल का ही रुप भी हैं और पहले से अधिक कहीं खूबसूरत भी  मगर नींव के साथ जुड़कर समाज को सुख देने के स्थान पर बेशकीमती सामानों से सजे मॉल्स और बड़े-बड़े बंगलों के स्वागत-कक्षों की शोभा बढाने मे ज्यादा सफल हैं .जिन्हे देख कर मेरे जैसे लोग कह उठते हैं-"बिलकुल वैसा ही है जैसा अपने गाँव मे स्कूल से आते रास्ते मे पड़ता

 था ; पता है स्कूल से आते बारिश और धूप मे हम इनके नीचे खड़े हो जाते थे.” और बात पूरी होने से पहले ही अचानक घूरने के अहसास से बगल में खड़े व्यक्ति की अजीब सी नजरों से बचते हुए मैं खामोशी की चादर ओढ़ कर आगे बढ़ जाया करती हूँ.

22 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना सोमवार 17 अक्टूबर 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

    जवाब देंहटाएं
  2. सादर नमस्कार आ . दीदी 🙏
    तकनीकी खामी के कारण आमन्त्रण स्पैम में चला गया था । बहुत बहुत आभार मेरे आरम्भिक दिनों के लेखन को मान प्रदान करने हेतु ।

    जवाब देंहटाएं
  3. अतीत और वर्तमान से हमारी पीढ़ी जूझती हुई सी प्रतीत होती है, हमने अपने बचपन में जो अनुभव किए हैं, वो हमारे लिए अमूल्य धरोहर और नई पीढ़ी के लिए पुरानी बातें हैं । आज का समय डिजिटल हो गया है ।
    सार्थक लेखन ।

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक किया । हार्दिक आभार जिज्ञासा जी !

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर अहसास संजोता आलेख

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार एवं स्वागत 🙏

      हटाएं
  6. बहुत सुन्दर अहसास संजोता आलेख

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार एवं स्वागत 🙏

      हटाएं
  7. उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार एवं स्वागत 🙏

      हटाएं
  8. अच्छा लगा बचपन में झांककर और यादों में डूबकर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार एवं स्वागत 🙏

      हटाएं
  9. प्रिय दी,
    स्मृतियों की खिड़की से झाँककर मन को बहुत अच्छा लगा। आपने बिल्कुल सही कहा हम अपने अंतःकरण से उत्पन्न स्वर्ण की आभा को छोड़कर कृत्रिम चकाचौंध के पीछे भाग रहे हैं।
    भविष्य में क्या इन स्मृतियों का सोंधापन पीढ़ियाँ महसूस भी कर पायेंगी यही प्रश्न घुमड़ रहा है।
    सस्नेह प्रणाम दी।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी चिन्तन परक स्नेहिल प्रतिक्रिया ने सृजन को सार्थक किया । हृदय से असीम आभार श्वेता ! सस्नेह वन्दे!

      हटाएं
  10. सब अब नकली बनावटी सा लगता है। सही लिखा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार एवं स्वागत 🙏

      हटाएं
  11. सच्चा अहसास!
    सही आंकलन है आज और पहले की जीवन शैली में, परिदृश्य बिल्कुल भिन्न, सोच भिन्न
    बचपन भिन्न, और अभिभावक भी काफी बदल ही गये हैं बस यादें हैं जो कितना कुछ सहेजें रहती है बस उसी रूप में।
    सुंदर संस्मरणात्मक आलेख मीना जी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. स्नेहिल सारगर्भित प्रतिक्रिया सराहना के स्वरूप में पाकर अभिभूत हूँ कुसुम जी ! आभार सहित सादर सस्नेह वन्दे !

      हटाएं
  12. पहले जैसी बातें अब कहाँ ...बचपन और बच्चों की सोच पहले और अब में बहुत बदल गये हैं ...सोदाहरण सुन्दर आँकलन..
    सही कहा अब घड़ी तो क्या कुछ भी पाने के लिए मेहनत नहीं करनी बस थोड़ी सी जिद्द और सब हासिल।
    मुझे लगता है इन्हें हम सी खुशी नहीं मिलती कुछ पाकर ,क्योंकि हम पाते नहीं कमाते थे खूब मेहनत करके हासिल करने थे अपनी पसंद की चीजों के साथ अपनी खुशियाँ....
    बहुत सुन्दर चिंतनपरक सृजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. स्नेहिल सारगर्भित प्रतिक्रिया सराहना के स्वरूप में पाकर अभिभूत हूँ सुधा जी ! आभार सहित सादर सस्नेह वन्दे !

      हटाएं
  13. जीवन के सर्वश्रेष्ठ समय से सम्बन्धित इस सुन्दर आलेख को पढ़ कर मन प्रफुल्लित हो गया। सच है कि वर्मन समय में पुराने समय का बचपन वाला माधुर्य एक स्वप्न बन कर रह गया है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी अनमोल प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ । हृदय से असीम आभार 🙏

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"