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शनिवार, 28 फ़रवरी 2015

"दीवारें"

कभी कहीं पढा था दीवारें  मौन होती हैं.बचपन से आज तक  सुनती आयी हूँ दीवारों के कान होते हैं.मेरा मन दीवारों के बारे मे कुछ और ही सोचता है.

लोग कहते हैं 
दीवारों के कान होते हैं 
 हाँ सच है....
 दीवारों के भी कान होते हैं 
मगर दीवारों के जुबान भी होती है
दीवारें बोलती हैं तो हर तरफ 
खामोशी की चादर पसरी होती है
तब केवल आपके 
अन्तर्मन की आवाज बोलती है
दीवारें  बोलती है तो आपका
एकाकीपन आपके साथ होता है
दीवारों का बोलना आपके 
अन्तर्मन का बोलना होता है
बडी शर्मीली होती है दीवारें
खामोशी में बात करती हैं
इनके केवल कान नही होते
इनकी जुबान भी होती है

                    

20 टिप्‍पणियां:

  1. इनके केवल कान नही होते
    इनकी जुबान भी होती है
    बहुत खूब👌👌

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  2. इनके केवल कान नही होते
    इनकी जुबान भी होती है
    बहुत खूब👌👌

    जवाब देंहटाएं
  3. इनके केवल कान नही होते
    इनकी जुबान भी होती है
    बहुत खूब👌👌

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ । बहुत बहुत आभार 🙏🌹🙏

      हटाएं
  4. बडी शर्मीली होती है दीवारें
    खामोशी में बात करती हैं
    इनके केवल कान नही होते
    इनकी जुबान भी होती है

    वाह!! पहली रचना ही नायब ,संगीता दी के प्रयास के फलस्वरूप आज आपकी पहली रचना को पढ़ने का सौभाग्य मिला,सादर नमन मीना जी

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    उत्तर
    1. आपने सदैव सराहना सम्पन्न प्रतिक्रियाओं से मान और उत्साह बढ़ाया है मेरा । बहुत बहुत आभार कामिनी जी 🙏🌹🙏

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  5. उत्तर
    1. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार सखी 🙏🌹🙏

      हटाएं
  6. आपकी पहली कृति भी उतनी ही सुंदर है दी।
    सारगर्भित सृजन।

    प्रणाम दी।
    सादर।

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  7. आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार श्वेता जी । सस्नेह वन्दे।

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  8. वाह!मीना जी बहुत पढ़ा आपको पर ये सच पहली बार पढ़ रही हूँ, शुरुआत से ही आपकी रचनाओं में जबरदस्त गहनता है गूढ़ तथ्य समेटे सारगर्भित सृजन।

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    उत्तर
    1. आपकी स्नेहसिक्त प्रतिक्रिया भाव विभोर कर देती है कुसुम जी । यूं ही स्नेह बनाए रखे । हृदय से असीम आभार।

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  9. बडी शर्मीली होती है दीवारें
    खामोशी में बात करती हैं
    इनके केवल कान नही होते
    इनकी जुबान भी होती है
    वाह!!!
    दीवारों पर ऐसा चिंतन...
    आपकी पहली रचना तो हमसे अछूती ही रह गयी थी संगीता जी का बहुत बहुत आभार इतनी सुन्दर कृतियों से वाकिफ कराने हेतु।

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    1. आपकी प्रतिक्रिया सदैव लेखनी में नवऊर्जा भरती और मेरे हृदय में प्रसन्नता । आपका स्नेह यूं ही बना रहे सुधा जी हृदय से असीम आभार आपका।

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  10. पढ़ तो गयी थी लेकिन अपनी सोच यहाँ दर्ज नहीं कर पाई थी , वापस आयी हूँ दीवारों की जुबानी अपनी खामोशी की कहानी सुनने । गहन चिंतन है । जब शब्द मौन हों तो अक्सर हम दीवारों से ही बात किया करते हैं ।
    गूढ़ सृजन ।

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    उत्तर
    1. आपकी हृदयस्पर्शी प्रतिक्रिया अपनी पहली रचना पर देख कर अभिभूत हूँ । आपका स्नेह यूं ही बना रहे 🙏🙏 हृदय की गहराईयों से असीम आभार🙏🙏

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  11. वाह... नई कहावत . दीवारों की जुबानी खूब कहा आपने

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    उत्तर
    1. स्वागत शिखा जी 🙏
      अपनी प्रथम रचना पर आपकी हौसलाअफजाई अनमोल है । हार्दिक आभार 🙏

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  12. वाह मीना जी,आपकी पहली ही रचना एक नयी बात कह रह हाई,और अनुभूति करो तो आपका कथन सटीक है।आपके सुंदर सफ़र के लिए बहुत शुभकामनाएँ।

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    उत्तर
    1. हृदय से असीम आभार जिज्ञासा जी ! आपकी शुभकामनाएँ अनमोल हैं 🙏

      हटाएं

मेरी लेखन यात्रा में सहयात्री होने के लिए आपका हार्दिक आभार 🙏

- "मीना भारद्वाज"